राजीव कुमार से मेरा परिचय पड़ोसी होने के नाते था। उनसे मेरी ज्यादा घनिष्ठता
नहीं थी, यदा कदा दुआ-सलाम हो जाया करती थी। मैं मिर्जापुर में नया-नया ही आया
था इसलिए जब राजीव कुमार ने उनके घर पर आयोजित पूजा में आने का निमंत्रण भेजा
तो मैं इस कार्यक्रम में सपरिवार शामिल हुआ ताकि इसी बहाने अपने पड़ोसियों से
परिचय भी हो जाए। मैंने देखा कि राजीव कुमार के अनुज संजीव कुमार ने पूजा के
आयोजन की सारी जिम्मेवारी अपने ऊपर ले रखी थी। संजीव कुमार का अपने बड़े भाई के
प्रति भक्तिभाव साफ झलक रहा था और कई लोगों को यह कहते सुना कि राजीव कुमार और
संजीव कुमार को देखकर ऐसा लगता है जैसे राम-लक्ष्मण की जोड़ी है। राजीव कुमार
की पत्नी सरल, विनम्र और धार्मिक स्वभाव की लगीं। विनम्र तो राजीव कुमार भी थे
परंतु उनकी विनम्रता, अंदर विद्यमान धन और प्रभाव के घमंड को छुपाने में
असमर्थ थी। वहाँ उपस्थित अधिकांश लोग राजीव कुमार की खुशामद और चाटुकारिता में
लगे थे और राजीव कुमार इसका भरपूर आनंद ले रहे थे। पूजा का प्रसाद चाँदी के
बर्तनों में पड़ोसा गया जिन पर "रा.कु." अंकित था। ऐसा लग रहा था कि पूजा का
आयोजन उन्होंने भगवान के प्रति भक्तिभाव से नहीं बल्कि अपने ऐश्वर्य और प्रभाव
के प्रदर्शन के लिए किया था। पूजा के कार्यक्रम से विदा होते वक्त राजीव कुमार
ने मेरा परिचय अपने पुत्र अजित और पुत्री अनुराधा से करवाया। अजित को एक
पेट्रोल पंप की एजेंसी मिली हुई थी और अनुराधा ने बताया कि एम.ए. करने के बाद
वह अब शोध कार्य कर रही है।
राजीव कुमार के घर आयोजित पूजा के दौरान मुझे कुछ पूर्व परिचित लोग मिले थे
तथा कई नए लोगों से भी परिचय हुआ जिनमें एक समर सिंह भी थे। समर सिंह मुझे एक
स्वाभिमानी व्यक्ति लगे क्योंकि वह अन्य लोगों की तरह राजीव कुमार की खुशामद
में नहीं लगे थे और इससे प्रभावित होकर मैंने उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण
दे दिया। कुछ ही दिनों पश्चात समर सिंह सपत्नीक मेरे घर पधारे और कुछ औपचारिक
बातचीत के बाद राजीव कुमार की चर्चा शुरू हो गई। समर सिंह ने बताया कि राजीव
कुमार केंद्र सरकार में एक महत्वपूर्ण पद पर आसीन हैं। सरकार की स्थानांतरण
नीति का मखौल उड़ाते हुए वह अपनी पच्चीस वर्षों की नौकरी में शुरू से ही
मिर्जापुर में पदस्थ रहे हैं। पिछले वर्ष जब राजीव कुमार पदोन्नत हुए थे तो
उनका मिर्जापुर से बाहर पदस्थ होना तय था क्योंकि उस स्तर का पद मिर्जापुर में
था ही नहीं। परंतु राजीव कुमार मिर्जापुर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे और अंततः
एक विशेष पद का सृजन कर उन्हें मिर्जापुर में ही पदस्थ किया गया। राजीव कुमार
को मिर्जापुर शहर से कोई विशेष लगाव नहीं था, यहाँ बने रहने का कारण यह था कि
उन्होंने यहाँ अपना अच्छा खासा मायाजाल फैला रखा था। जब मैंने राजीव कुमार के
लक्ष्मण जैसे भाई का जिक्र किया तो उन्होंने बताया कि संजीव कुमार की अपने
अग्रज के प्रति भक्ति उसकी मजबूरी है। काफी प्रयास करने के बावजूद भी संजीव
कुमार को उसके मन के लायक नौकरी नहीं मिल पाई। इधर राजीव कुमार काफी काला धन
इकट्ठा कर चुका था और उसे सफेद करने की तरकीब ढूँढ़ रहा था। उसी के विभाग के एक
सेवानिवृत अधिकारी ने उसे अपने रिश्तेदारों के नाम से व्यापार शुरू करने की
सलाह दी और कहा कि व्यापार में वास्तविकता से ज्यादा लाभ दिखाकर काला धन को
सफेद किया जा सकता है। राजीव कुमार को यह परामर्श आया पसंद आया और अपनी पत्नी
तथा भाई के नाम से उसने एक बंद पड़ी औद्योगिक इकाई को खरीद लिया। राजीव कुमार
को इस औद्योगिक इकाई के संचालन में कोई रुचि नहीं थी, उसका मकसद तो काला धन
ठिकाने लगाना था। परंतु किस्मत उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी। अपने ऊपर लगे
असफलता के धब्बे को मिटाने हेतु संजीव कुमार ने काफी मेहनत की जिससे बंद पड़ी
औद्योगिक इकाई लाभ में आ गई। राजीव कुमार के दोनों हाथों में लड्डू था। समर
सिंह ने कहा कि जब संजीव कुमार का जीवन-यापन अपने अग्रज की कृपा से हो रहा था
तो लक्ष्मण जैसी भक्ति दिखाना तो उसकी मजबूरी थी। इसी बीच समर सिंह की पत्नी
ने कहा कि चर्चा को परनिंदा से प्रशंसा की तरफ ले चलते हैं और उन्होंने राजीव
कुमार की पत्नी पूर्वा की प्रशंसा करते हुए बताया कि वह अत्यंत सरल और धार्मिक
प्रवृत्ति की हैं। पूर्वा ने कई बार अपने पति को ईमानदारी की राह पर चलने की
सलाह भी दी थी परंतु हर बार वह बुरी तरह अपमानित हुई। राजीव कुमार ने अपने
प्रभाव से पूर्वा के भाई को एक निजी कंपनी में नौकरी दिलवाई थी और अपने ससुर
को आर्थिक मदद भी दी थी जिनकी याद दिलाकर वह पूर्वा को चुप करा देता था।
श्रीमती सिंह ने बताया कि पूर्वा अंदर ही अंदर अवसाद से ग्रसित रहती हैं और
अपने अपराधबोध को कम करने हेतु कई गरीब परिवारों के बच्चों की शिक्षा का व्यय
उठाती हैं। शायद उनके इस पुण्य का ही प्रताप था कि आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त
होने तथा काला धन के निर्लज्ज प्रदर्शन के बावजूद राजीव कुमार नौकरी में
फल-फूल रहे थे। चूँकि मुझे उसी दिन एक अति आवश्यक कार्य से शहर से बाहर जाना
था इसलिए हमारी चर्चा और मुलाकात यहीं समाप्त हो गई।
हमारे मोहल्ले में राजीव कुमार की पुत्री के विवाह तय होने की चर्चा चल पड़ी थी
और कुछ ही दिनों बाद निमंत्रण पत्र भी प्राप्त हो गया। जब कुमार साहब का हर
कार्य का एक मकसद अपनी बेशुमार दौलत और शक्ति का प्रदर्शन होता था तो पुत्री
के विवाह जैसा महत्वपूर्ण कार्य इसका अपवाद कैसे हो सकता था। प्रदेश के सभी
नामी-गिरामी राजनेता और महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारी विवाह कार्यक्रम में
उपस्थित थे। कुमार साहब यह सुनिश्चित कर रहे थे कि अपने मित्रों तथा
रिश्तेदारों का समारोह में पधारे अति विशिष्ट व्यक्तियों से परिचय हो जिससे वे
उनकी पहुँच तथा प्रभाव से अवगत हो सकें। विवाह कार्यक्रम में परोसे गए
व्यंजनों के प्रकार, साज-सज्जा, गाड़ियों की संख्या और उनके ब्रांड इत्यादि
मिर्जापुर जैसे छोटे शहर में काफी समय तक चर्चा के विषय रहे। कुमार साहब ने एक
साधारण परिवार के लड़के को अपना दामाद चुना था जिसका कुछ ही माह पूर्व केंद्रीय
सिविल सेवा में चयन हुआ था। उनके दामाद का पूरा परिवार कुमार साहब के आगे
नतमस्तक था। विवाह निर्बाध संपन्न हुआ और कुमार साहब ने अपने जीवन का एक और
महत्वपूर्ण पड़ाव सफलतापूर्वक पार कर लिया।
कुमार साहब के जीवन में अब तक सब कुछ उनके मन मुताबिक होता आया था। पुत्र को
पेट्रोल पंप से अच्छी आमदनी हो रही थी और दामाद उन्हें अपना पथप्रदर्शक मान कर
उन्हीं के पदचिन्हों पर चल पड़ा था। कई लोगों को मैंने कहते सुना कि कलियुग में
ईश्वर की अनुकंपा बेईमानों पर ही होती है। दौलत के साथ साथ कुमार साहब का
अहंकार भी बढ़ता जा रहा था और उनके विचारों से असहमति रखने वाली उनकी पत्नी
पूर्वा का अपमान तथा तिरस्कार भी। अपमान और घुटन भरी जिंदगी का पूर्वा के
स्वस्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था और आखिर एक दिन गंभीर हृदयाघात से उसकी
जिंदगी का अंत हो गया। मृत्यु उपरांत चंद रस्मों का निर्वहन करने के उपरांत
कुमार साहब की जिंदगी पूर्ववत चल पड़ी जैसे कुछ हुआ ही न हो। मोहल्ले के कई
लोगों को मैंने दबी जुबान से राजीव कुमार की रंगीन जिंदगी का भी जिक्र करते
सुना था परंतु प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को नहीं मिला था। पूर्वा की मृत्यु के
बाद राजीव कुमार की जिंदगी का यह पक्ष भी पर्दे से बाहर आ गया। उनके घर पर
उनकी महिला मित्रों का रोज जमघट लगने लगा। राजीव कुमार की महिला मित्रों में
विनीता कुमारी नाम की एक आकर्षक और अविवाहित लड़की थी। वह एक साधारण परिवार से
थी परंतु थी वह तेज तर्रार और अत्यंत महत्वाकांक्षी। उसके माता-पिता भी अभाव
भरी जिंदगी से त्रस्त हो चुके थे और इसलिए उन्होंने विनीता को राजीव कुमार से
घनिष्ठता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। धीरे धीरे उसने कुमार साहब को पूरी
तरह अपने वश में करके विवाह हेतु राजी कर लिया। इस बेमेल विवाह के निर्णय से
परिवार के सभी लोग मन ही मन नाराज थे परंतु खुलकर विरोध करने का साहस किसी में
नहीं था। विवाह बड़े धूमधाम से संपन्न हुआ और विनीता कुमारी सपरिवार कुमार साहब
के घर में जम गई।
विनीता कुमारी ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से अपना जाल फैलाना शुरू कर दिया। उसने
राजीव कुमार को समझाया कि उन्हें अपने पुत्र अजित का विवाह कर पारिवारिक
दायित्वों से मुक्त हो जाना चाहिए। शीघ्र ही अजित का विवाह संपन्न हुआ और एक
नया घर देकर उसकी अलग गृहस्थी बसा दी गई। फिर विनीता ने धीरे-धीरे करके एक के
बाद एक कुमार साहब की संपत्ति अपने नाम करवानी शुरू कर दी। संपत्ति के इस
हस्तांतरण में गोपनीयता बनाए रखने की पूरी कोशिश की गई थी परंतु ऐसी बातें
खुजली की तरह छुपाए नहीं छुपती हैं। अजित को जब पता चला कि उसकी सौतेली माँ ने
आधे से अधिक संपत्ति अपने नाम करवा ली है तो उसके सब्र का बाँध टूट गया। एक
दिन उसने अपने पिता को समझाने की कोशिश कि वह समय रहते सँभल जाएँ परंतु उसे भी
अपनी माँ की तरह अपमानित और तिरस्कृत होना पड़ा। राजीव कुमार ने कहा कि उसका
पेट्रोल पंप भी उसे उन्हीं की कृपा से मिला है वरना वह दर-दर की ठोकरें खा रहा
होता। इस घटना के बाद से पिता और पुत्र के बीच संवाद बिल्कुल बंद हो गया तथा
विनीता का हौसला और भी बढ़ गया। उसकी गिद्धदृष्टि अब संजीव कुमार द्वारा
संचालित औद्योगिक इकाई पर पड़ी। उसने राजीव कुमार को कहा कि पूर्वा की मृत्यु
के बाद संजीव कुमार ने औद्योगिक इकाई का कोई लेखा-जोखा नहीं दिया है तथा सारा
लाभ खुद ही हजम कर गया है। राजीव ने इस विषय पर शीघ्र ही कुछ करने का आश्वासन
दिया।
राजीव कुमार ने जब अपने अनुज से औद्योगिक इकाई के लाभ का ब्योरा माँगा तो उसे
जो उत्तर मिला उसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। संजीव कुमार ने कहा कि
भाभी की मृत्यु उपरांत अब उस इकाई पर उसका संपूर्ण स्वामित्व है। राजीव अपना
आपा खो बैठा और उसने अपने अनुज को एहसान-फरामोश, लालची, पाखंडी और क्या कुछ
नहीं कह डाला। काफी कुछ सुनने के बाद जब संजीव कुमार ने उसे याद दिलाया कि यह
औद्योगिक इकाई उनकी गाढ़ी कमाई से नहीं बल्कि काले धन से अर्जित की गई थी तो वह
चुप हो गया। अपने अहं की तुष्टि तथा विनीता कुमारी के दबाव में उसने संजीव पर
मुकदमा तो दायर कर दिया परंतु मन में इस बात का डर भी था कि संजीव कहीं इस
मामले को उसके काले धन से जोड़कर नई परेशानी न पैदा कर दे। इस घटना के पश्चात
विभाग को राजीव कुमार के विरुद्ध कुछ गुमनाम शिकायतें भी मिलीं परंतु उसकी
अपने विभाग में जबरदस्त पकड़ थी और सारी शिकायतें प्रारंभिक जाँच के बाद
निराधार मानकर बंद कर दी गईं। यह घटनाएँ उसकी आगे होनेवाली दुर्दशा का संकेत
दे रही थीं परंतु वह सँभलने के बजाय और भी निर्भीक होकर, पूर्ववत काला धन
बटोरने में लगा रहा ।
राजीव कुमार अपनी जिंदगी में अब तक सफलता के तथाकथित मापदंडों पर सदैव सफल रहा
था परंतु भ्रष्ट आचरण पर टिकी सफलता कभी भी स्थायी नहीं होती है। और अब तो
कर्ण के कवच-कुंडल की तरह उसकी रक्षा कर रहा पूर्वा का पुण्य भी उससे छिन चुका
था। एक दिन जब मैं शाम को घर लौटा तो देखा कि राजीव कुमार के घर पर कई लोग जमा
थे। उनके वाहनों को देखकर मैं समझ गया कि वे सी.बी.आई. के अधिकारी थे। उनमें
से एक अधिकारी मेरे पास आया और उसने मुझे राजीव कुमार के खिलाफ होने वाली
कार्यवाही का गवाह बनने का अनुरोध किया। मैंने सुना था कि कोर्ट-कचहरी के
चक्कर में गवाहों को भी काफी परेशानी होती है और इसलिए मैं इस कानूनी कार्रवाई
से दूर ही रहना चाहता था परंतु सी.बी.आई. के खौफ के चलते इनकार नहीं कर पाया।
मेरी उपस्थिति में सी.बी.आई. के अफसरों ने घर की तलाशी शुरू कर दी। राजीव
कुमार ने सपने में भी सोचा नहीं था कि एक दिन यह नौबत आएगी। फिर भी वह शुरू
में बड़े आत्मविश्वास के साथ अफसरों से बात करता रहा और पुलिस तथा सी.बी.आई. के
चंद वरिष्ठ अधिकारियों का नाम लेकर उन्हें प्रभावित करने का प्रयास भी किया।
यह सब जब बेअसर साबित हुआ तो उसने कई जगह फोन किए परंतु सभी ने इस कार्रवाई को
रोकने में अपनी असमर्थता जाहिर की। अब राजीव कुमार पूरी तरह निराश और पस्त हो
चुका था। वह एक अच्छे और अनुशासित बालक के समान जाँच में सहयोग करने लगा।
सी.बी.आई. को उसके सभी बैंक खातों, लॉकरों और संपत्ति की सटीक जानकारी थी।
मुझे ऐसा लगा कि उसके भाई संजीव ने ही उसकी सोने की लंका ढाही है। राजीव कुमार
का शक भी अपने अनुज पर था और वह उसे आस्तीन का साँप, विभीषण जैसी उपाधियों से
विभूषित कर रहा था। तलाशी के उपरांत सी.बी.आई. दल के प्रमुख ने उसे वह शिकायत
दिखाई जिसके आधार पर छापा पड़ा था। शिकायत उसके पुत्र अजित ने की थी और उसने यह
भी लिखा था कि उसका नाम गोपनीय रखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह अपनी माँ
के अपमान का बदला लेना तथा एक भ्रष्टाचारी का घमंड तोड़ना चाहता है। सी.बी.आई.
ने राजीव कुमार को गिरफ्तार कर उसके विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत
मुकदमा दायर किया। राजीव कुमार ने अपनी जिंदगी में अनेकों भ्रष्टाचारियों को
अदालत तथा विभागीय जाँच में बेदाग बरी होते देखा था, इसलिए वह अब भी आश्वस्त
था कि यह विपत्ति शीघ्र ही टल जाएगी।
धनपत राम की गिनती मिर्जापुर के शीर्षस्थ वकीलों में होती थी और जमानत दिलाने
में तो वह अद्वितीय थे। धनपत राम ने राजीव कुमार को जमानत पर रिहा करवा दिया
और भरोसा दिलाया कि वह उसे अदालत में निर्दोष साबित कर देगा। इस बीच राजीव
कुमार को एक और झटका उसके विभाग ने दिया। विभाग के उच्च अधिकारियों ने अपनी
ईमानदारी दिखाने हेतु उसे निलंबित कर, उसके विरुद्ध विभागीय जाँच शुरु कर दी।
निलंबित होने के उपरांत राजीव कुमार का यह भ्रम भी दूर हो गया कि उसके वरिष्ठ
अधिकारीगण, जिनके लिए उसने क्या कुछ नहीं किया था, इस संकट की घड़ी में उसका
साथ देंगे। धनपत राम ने उसे समझाया कि अदालत से बरी होने के बाद विभागीय जाँच
से निपटना बेहद आसान होगा, इसलिए वह निलंबन से विचलित नहीं हो। पूर्वा के
हिस्से का औद्योगिक इकाई से प्राप्त लाभ को शामिल करने के बाद भी राजीव कुमार
की आय तथा छापे में बरामद संपत्ति के मध्य काफी अंतर था। जिस दौलत को वह अपनी
ताकत समझता था, वही अब उसके गले का फाँस बन गई थी। परंतु राजीव कुमार को भरोसा
था कि धनपत राम इसका कोई न कोई तोड़ निकालकर उसे निर्दोष साबित कर देंगे।
आम धारणा के विपरीत, मामले की सुनवाई तेजी से होने लगी और एक दिन मुझे भी
गवाही हेतु अदालत में उपस्थित होना पड़ा। मेरी गवाही सिर्फ दस्तावेजों पर मेरे
हस्ताक्षरों की पुष्टि तक सीमित होने के कारण मुझे जल्द ही अदालत से छुट्टी
मिल गई। अदालत में मेरी मुलाकात राजीव कुमार से भी हुई। उसके आत्मविश्वास में
कोई कमी नहीं आई थी और उसने बताया कि छापे में बरामद संपत्ति को जायज स्रोतों
से अर्जित दिखाने में अब कोई कठिनाई नहीं है। उसके चंद व्यापारी मित्रों ने यह
बयान दे दिया है कि उन्होंने उसे अनौपचारिक रूप से कर्ज दिया था और धनपत राम
ने सी.बी.आई. द्वारा किए गए उसकी संपत्ति के आकलन में कई खामियाँ निकाल दी हैं
जिससे उसका बरी होना निश्चित है। वह तो बरी होने के बाद अपने अनुज और पुत्र को
सबक सिखाने की योजनाएँ बना रहा था।
एक दिन शाम को जब मैं ऑफिस से लौटा ही था कि समर सिंह ने मुझे खबर दी कि राजीव
कुमार को पाँच वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई है। अदालत ने उसके व्यापारी
मित्रों के कर्ज देने के बयान को संदेहास्पद मानते हुए, उसे आय से अधिक
संपत्ति अर्जित करने का दोषी पाया। राजीव कुमार के लिए यह सदमा असहनीय साबित
हुआ और कुछ ही दिनों बाद जेल में दिल का दौरा पड़ने से उसकी मृत्यु हो गई। यह
खबर सुनकर मोहल्ले के लोग जमा हो गए और राजीव कुमार के दुखद अंत की चर्चा होने
लगी। लोगों ने उसके दुखद अंत के कई कारण गिनाए जैसे पूर्वा का अपमान और
मृत्यु, विनीता कुमारी जैसी लड़की से दूसरा विवाह, उसके अनुज और पुत्र की
गद्दारी इत्यादि। यह सब कुछ सुनकर मैंने मन ही मन सोचा कि यह सब तो निमित्त
मात्र थे, मूल कारण तो उसका भ्रष्ट आचरण था जिसकी सजा उसे किसी न किसी प्रकार
एक दिन मिलनी ही थी - "बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय।"